Saturday 23 May 2015

अथ श्री हनुमान चालीसा ।। Astro Classes.

अथ श्री हनुमान चालीसा ।। Astro Classes, Silvassa.

दोहा:-
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥

चौपाई:-
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवन सुत नामा ॥
महावीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमिति के संगी ॥
कंचन बरन विराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा विराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
शंकर सुवन केसरीनंदन । तेज़ प्रताप महा जग बंदन ॥
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहीं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंन्द्र जी के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना । लंकेश्वर भय सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानु ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दु्र्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥
आपन तेज़ सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावैं ॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वीं राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोइ लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखबारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥
तुम्हरो भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा ॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरु देव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहीं बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥

दोहा:-
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

श्री विद्या की साधना से सिद्ध किया श्री यन्त्र ।। Astro Classes, Silvassa.

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श्री विद्या से संबंधित तंत्र ब्रह्माण्ड का सर्वश्रेष्ठ तंत्र है । जिसकी साधना ऐसे योग्य साधकों और शिष्यों को प्राप्त होती है जो समस्त तंत्र साधनाओं को आत्मसात कर चुके हों । श्री विद्या की साधना का सबसे प्रमुख साधन है श्री यंत्र ।।

श्री यंत्र प्रमुख रूप से ऐश्वर्य तथा समृद्धि प्रदान करने वाली महाविद्या त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है । यह यंत्र सही अर्थों में यंत्रराज है, इस यंत्र को स्थापित करने का तात्पर्य श्री को अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ आमंत्रित करना होता है ।।

जो साधक श्री यंत्र के माध्यम से त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसके एक हाथ में सभी प्रकार के भोग होते हैं, तथा दूसरे हाथ में पूर्ण मोक्ष होता है । आशय यह कि श्री यंत्र का साधक समस्त प्रकार के भोगों का उपभोग करता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है ।।

इस प्रकार यह एकमात्र ऐसी साधना है जो एक साथ भोग तथा मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है, इसलिए प्रत्येक साधक इस साधना को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है । स्फटिक का बना हुआ श्री यंत्र अतिशीघ्र सफलता प्रदान करता है ।।

इस यंत्र की निर्मलता के समान ही साधक का जीवन भी सभी प्रकार की मलिनताओं से परे हो जाता है । स्फटिक को हीरे का उपरत्न कहा जाता है । स्फटिक को कांचनमणि, बिल्लोर, बर्फ का पत्थर तथा अंग्रेजी में रॉक क्रिस्टल कहा जाता है । यह एक पारदर्शी रत्न है । स्फटिक बर्फ के पहाड़ों पर बर्फ के नीचे टुकड़े के रूप में पाया जाता है ।।

यह बर्फ के समान पारदर्शी और सफेद होता है । यह मणि के समान ही होता है । इसलिए स्फटिक के श्रीयंत्र को बहुत पवित्र माना जाता है ।।

स्फटिक श्रीयंत्र स्फटिक का बना होने के कारण इस पर जब सफेद प्रकाश पड़ता है तो ये उस प्रकाश को परावर्तित कर इन्द्र धनुष के रंगों के रूप में परावर्तित कर देता है । यदि आप चाहते है कि आपकी जिन्दगी भी खुशी और सकारात्मक ऊर्जा के रंगों से भर जाए तो घर में स्फटिक श्रीयंत्र स्थापित करें ।।

यह यंत्र जिस घर में रहता है, उस घर से हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है । श्री यंत्र शांति, समृद्धि, सद्भाव, और अच्छी किस्मत में प्रवेश करने के लिए मुख्य मार्ग माना जाना जाता है । यह यंत्र ब्रम्हा, विष्णु, महेश यानि त्रिमूर्ति का स्वरुप भी माना जाता है ।।

यह विविध वास्तु दोषों के निराकरण के लिए श्रेष्ठतम उपाय है । श्री यंत्र पर ध्यान लगाने से मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है । उच्च यौगिक दशा में यह सहस्रार चक्र के भेदन में सहायक माना गया है । कार्यस्थल पर इसका नित्य पूजन व्यापार में विकास देता है । घर पर इसका नित्य पूजन करने से संपूर्ण दांपत्य सुख प्राप्त होता है ।।

पूरे विधि विधान से इसका पूजन यदि प्रत्येक दीपावली की रात्रि को संपन्न कर लिया जाय तो उस घर में साल भर किसी प्रकार की कमी नही होती है ।। 
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।।। नारायण नारायण ।।। 

व्यापार में अकल्पनीय वृद्धि हेतु कुछ सरल उपाय।। Astro Classes.

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रुके हुए कारोबार में स्पीड लाने एवं व्यापार में अकल्पनीय वृद्धि हेतु कुछ सरल उपाय।। Astro Classes, Silvassa.

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मित्रों, कुछ ऐसे नुख्से आज आपलोगों को बताता हूँ, जिसे करने से आपका रुका हुआ कारोबार स्पीड से चलने लगेगा तथा आपने जितना सोंचा नहीं होगा उससे ज्यादा बढ़ेगा आपका कारोबार ।।

मित्रों, तरह-तरह के और अचूक उपाय हमारे पूर्वज ऋषियों ने हमारी ख़ुशी के लिए बताये हैं और ये बात मैं बार-बार आपलोगों को याद दिलाने का प्रयास करता हूँ । लेकिन हम हैं, कि हमें न जाने किस संसय से ग्रसित कर रखा है ।।

मित्रों, कुछ लोग हमारी संस्कृति को समझने का प्रयत्न ही नही करते, कुछ लोग सुनते तो हैं लेकिन सुनकर समझते नहीं, और कुछ लोग समझकर करते नहीं, तथा कुछ लोग करके भी करते नहीं । अर्थात् अपने भावनाओं को नियन्त्रित नहीं रख पाते जिससे किया कराया सब बेकार हो जाता है ।।

चलिए कोई बात नहीं, फिर भी मेरा काम है आपलोगों को जगाने का, सो करने का प्रयास करता हूँ ।। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

जी हाँ, ये एक ऐसा मन्त्र है, जो आपकी हर मनोकामना को सिद्ध करने की क्षमता रखता है । अब करना ये है, कि हर रोज प्रात:काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नानोपरांत तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें थोड़ी सी रोली या लाल चन्दन डालकर उक्त मंत्र का जप करते हुए घर में लगे हुए तुलसी के पौधे में श्रद्धा पूर्वक समर्पित करें ।।

अपने घर मर हर शाम को गाय के शुद्ध देसी घी का दीपक जलायें और इसी मंत्र की पांच माला जाप करें । ये जप आपके रुके हुए व्यापार में चमत्कारिक लाभ तत्काल दिखायेगा । ये कोई कहने अथवा केवल सुनने की बात नहीं है, आप स्वयं इसे अनुभव करेंगें ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

तत्काल शान्ति एवं सफलता हेतु ये अचूक उपाय करें ।। Astro Classes.

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जीवन में जब सबसे ज्यादा आप परेशान हों, तो तत्काल शान्ति एवं सफलता हेतु ये अचूक उपाय करें ।। Astro Classes, Silvassa.

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मित्रों, जब आप अपने जीवन के किसी क्षण में चारो ओर से तरह-तरह के विपत्तियों से बुरी तरह से घिर चुके हों और उस समय जब आपको कुछ समझ में न आये कोई रास्ता न दिखे तब यह निम्नांकित कुछ अचूक उपाय हैं जिसे आपको करना चाहिए जिससे आपको तत्काल शान्ति एवं सफलता मिलेगी और अवश्य मिलेगी ।।

आप अपने सभी परेशानियों के लिए अलग-अलग मार्ग ढूंढने से अच्छा है, माँ भगवती और बाबा बजरंग बली के शरण ग्रहण करें । सर्वप्रथम आप गहरी सांस लें और भगवान, माता रानी तथा अपने धर्म पर पूरा भरोसा रखें ।।

आप अपनी समस्या को साफ-साफ भोजपत्र के कागज पर स्पष्टरूप से लिखकर माँ भगवती दुर्गा देवी के श्री चरणों में रख देँ । अब आप धुप-दीप नैवेद्य आदि से माता जी की पूजा के बाद गूगल जलाकर ठीक आधी रात को दुर्गा सप्तशती का पूरा पाठ करेँ । सुबह होने से पहले आपकी समस्या का समाधान न हो जाय तो आप देखना अवश्य ही हो जायेगा ।।

अब अगर आपको दुर्गा सप्तशती का पाठ अगर आपको नहीं आता अथवा आप वैष्णव हैं तो आप सीताराम जी, लक्ष्मीनारायण भगवान, राधा-कृष्ण अथवा सत्यनारायण भगवान के साथ श्री हनुमान जी की प्रतिमा अथवा चित्र के सामने गुड और घी का भोग लगायें । फिर सम्पूर्ण समर्पण भाव से 108 हनुमान चालीसा का पाठ स्वयं करेँ ।।

आप भगवान और हमारे धर्म पर सम्पूर्ण समर्पण भाव से भरोसा रखिये आपको आपके बड़े से बड़े मुश्किलों से इन छोटे-छोटे उपायों से तत्काल छुटकारा पा जायेंगे ।।

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।।। नारायण नारायण ।।।

आरती श्री शनिदेव जी की ।। Astro Classes.

आरती श्री शनिदेव जी की ।। Astro Classes, Silvassa.

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय..

श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय..

क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय..

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय..

देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥ जय..

श्री शनिदेव जी की चालीसा।। Astro Classes.

श्री शनिदेव जी की चालीसा।। Astro Classes, Silvassa.

दोहा:-

जय गणेश गिरिजा सुवन मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय राखहु जनकी लाज॥

चालीसा:-

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्‍टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिये माल मुक्तन मणि दमकै॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन। यम कोणस्थ रौद्र दुख भंजन॥
सौरी मन्द शनी दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होइ निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति- मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहिं पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौंलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चंद्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरें डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी- मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक वोलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव- लखि विनति लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारी चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदि अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भूत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशिब बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

दोहा:-



पाठ शनीश्‍चर देव को कीन्हों ' विमल ' तय्यार।
करत पाठ चालीस दिन हो भवसागर पार॥
जो स्तुति दशरथ जी कियो सम्मुख शनि निहार।
सरस सुभाष में वही ललिता लिखें सुधार।